बेवाकी वाला उ अन्दाज डूब गईल-डॉo यशवन्त केशोपुरी

बेवाकी वाला उ अन्दाज डूब गईल।
स्वतंत्रता के हर अल्फाज डूब गईल।

कानवा के जे कहानी सुनवलस,
दादी वाला उ आवाज डूब गईल।

मुड़ रहल हर काम तेजी के तरफ,
चक्कर मे जल्दी के अकाज डूब गईल।

अजुए से काल्ह के तलाशत तलाशत,
शाम होखते हमार आज डूब गईल।

उफन रहल पीढ़ी बदतमीजी के ओरी,
सभ्यता संस्कृति के लिहाज डूब गईल।

शिक्षित ना भईल एह समय तक “यश”,
तवन-तवन आज समाज डूब गईल।

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