घनघोर बदरिया छाइल बा
झूम के सावन आइल बा।
हरियर खेतवा, हरियर डाली,
देख के मन हर्षाइल बा ।
झर-झर बरसे, मेघ बदरिया,
सरगम गावे,पुरवइया रे।
पीपल-बरगद के,हिले डलिया
झूहर झूहर, अंगनईया रे।
गाछ-पात के हरियर पाती
देख के मन मुस्काइल बा।
बानावा मोरवा नाचत जईसे
रीत मिलन के, आईलबा।
नदि किनारे छप-छप छप छप
चिरई चुरुंग सब खेले रे।
सावन के पावन पुरवईया
मनवा मिश्री घोले रे।