न जाने सिसिर दर्द ओ पात के।
जवन टूटि छोड़े बिरिछि गात के।।१।।
गिरल भूमि पर ऊ कहे दुख भरल,
पवन जा जगावऽ न जज्बात के।।२।।
रही से लगाई मउर डाढ़ि पर,
फिकिर का करीं हम बिना बात के।।३।।
अरे जिन्दगी के इहे हालि बा,
गंँवाई सभे एह सौगात के।।४।।
बसन्ती समय ना रहे हर घरी,
सभे दास बनि जात हालात के।।५।।