काहे बिटीया ही होली पराई-किरन शर्मा

जग के रीति समझ ना आई
काहे बिटीया ही होली पराई
बेटी से जब बहु बनके आई
तब कुछ अर्थ समझ मे आई
काहे बेटी ही होली पराई

हँसी खुशी रस्म भईल अदाई
छुट गईल बाबुल के अंगनवा
चिड़िया उडली पंख लगाई
तब कुछ अर्थ समझ मे आई
काहे बेटी ही होली पराई

ससुराल के दहलीज पर जइसे
बेटी बनी बहु के पाव धराइल
तन अपना मन मे कई गो सपना
तब कुछ अर्थ समझ मे आई
काहे बेटी ही होली पराई

घर आँगन चुल्हा चौका सब
एकही नियन बुझाई
तब काहे सास ननदीया
लागे लगली पराई
तब कुछ अर्थ समझ मे आई
काहे बेटी ही होली पराई

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