जियरा अपनो जार के देखीं
खाली जेब भी झार के देखीं
चमकी जिनगी रउवो एकदिन
उम्मीद के दिया बार के देखीं
होखे जब तर्क त हार के देखीं
मंदिर के सोझा मजार के देखीं
हर आदमी इँहवा इंसाने लउकी
धरम के चश्मा उतार के देखी
मजदुरी के पसेना गार के देखीं
ग़रीब के चुवत लार के देखीं
खाली जे बाटे उ काने नू भरी
कुछ बात असहीं टार के देखीं
आ गइल बसंत बहार के देखीं
चिरई चुरूंग के प्यार के देखीं
प्राकृति मे कुछउ स्थिर ना होला
अंतरिक्ष के बहत धार के देखीं