ताख पर एक दिया जलाये रखा हूँ-जमील मीर

ताख पर एक दिया जलाये रखा हूँ।
वो आ न जाए घर मेरे, इसलिए घर को सजाये रखा हूँ।।

मांगा हु दुआओं मे पल पल तुझे
तेरा दीदार हो जाए बस एक पल मुझे

मुद्दतों से ये अरमान लगाए रखा हूँ।
ताख पर एक दिया जलाये रखा हूँ।।

दिल की दिवारों मे अब कोई जान नही है
तेरे सिवा अब मेरा कोई पहचान नहीं है

इसलिए तुझे दिल मे छुपाए रखा हूँ।
ताख पर एक दिया जलाये रखा हूँ।।

इस बेपनाह मुहब्बत को क्या नाम दूं
तेरे सिवा इस दिल को और क्या काम दूं

जमील तेरे दिल मे एक घर बसाये रखा हूँ।
ताख पर एक दिया जलाये रखा हूँ।।

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