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चांद के ही जमीन पर बुलावे के बा – मुकेश भावुक

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उनुकर इरादा हमके सतावे के बा।
हमहि से प्रेम हमहि से छुपावे के बा।

कबले देखब छुप छुप के चांद के,
चांद के ही जमीन पर बुलावे के बा।

रोम रोम में एगो अलगे नशा चढ़ल,
इहे खुशबू दुनिया मे महकावे के बा।

प्रेम वासना के नाम न ह समझ लीं,
मजनुवन के ई बात समझावे के बा।

मोबाइल, इंटरनेट के एह दौर में भी,
कवनो कबूतर से चिट्ठी पहुँचावे के बा।

मन बना लीं त मंजिल दूर कहाँ बा,
सात समंदर पार भी घर बनावे के बा।

‘भावुक’ हो! जब जब याद सताई,
लवट के एक न एक दिन आवे के बा।

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