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कुछू ना कुछू जिम्मेदारी मिली – शम्श जमील

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रसे-रसे महुवा फुलाइल हो रामा-अशोक द्विवेदी

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केहू के जॉब सरकारी मिली
केहू के ताना भारी मिली
जे बा लाहान लगवले भाई
उनको कवनो बेचारी मिली।

नया साल पर हर आदमी के
कुछू ना कुछू जिम्मेदारी मिली।

जरे वाला देखि के जरते रही
रउवा जस लोग काम करते रही
अपना खेत मे लगाके पाहरा
दोसरा के फसल चरते रही।

केहू के हिस्सा मे सिधरी मछरी
बाखरा मे केहू के बारारी मिली।
नया साल पर हर आदमी के
कुछू ना कुछू जिम्मेदारी मिली।

नाही करी लड़ाई के चिंता
धूर्तन से कबो बड़ाई के चिंता
लेके नेक इरादा ए साल
करीं शिखर चढाई के चिंता।

लागल रहीं बस मन से रउवा
कबो ना कबो दिहाड़ी मिली।
नया साल पर हर आदमी के
कुछू ना कुछू जिम्मेदारी मिली।

जियरा अपनो जार के देखीं – शम्स जमील

जियरा अपनो जार के देखीं खाली जेब भी झार...

रसे-रसे महुवा फुलाइल हो रामा-अशोक द्विवेदी

रसे-रसे महुवा फुलाइल हो रामा उनुका से कहि दऽ। रस देखि...

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गते-गते दिनवाँ ओराइल हो रामा रस ना बुझाइल। अँतरा क कोइलर...

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