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संसार के बाजार में – रिशु कुमार गुप्ता

संसार के बाजार में
ए मनई का का बेचाता?

सांच बेचाता झूठ बेचाता
पाखंड में पड़िके जूठ बेचाता,

कौड़ी भावे काम बेचाता
नींद चैन आराम बेचाता

मान शान सम्मान बेचाता
थोड़की में इमान बेचाता

इज्जत आबरु सब बेचाता
धरम जात मजहब बेचाता

कंठ बेचाता आवाज बेचाता
दिल अउरी दिमाग बेचाता

मजबूरी लाचारी बेचाता
केहू के होशियारी बेचाता

प्यार मोहब्बत जज्बात बेचाता
संयम, क्षमता औकात बेचाता

देखऽ नोट प भोट बेचाता
आदमी गोटे गोट बेचाता

परिवार संगे मकान बेचाता
दुआर खेत खरिहान बेचाता

सुनऽ मनई रिशु के कहनाम
तेरह के भाव में जान बेचाता

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