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कबो हमहु संतोष पागल रहनी – नूरैन अन्सारी

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प्रीत में केहु के लागल रहनी
कई कई रात ले जागल रहनी
कबो हमहु संतोष पागल रहनी

ना फ़ोन ना मोबाइल रहे
मन हरदम धधाइल रहे
दिन में सपना देखीं रोज़
घर से डेली मिले डोज
अलगे रहे आपन पोज
गाँव- जवार के छाँटल रहनी
केहु के आँख के काजल रहनी
कबो हमहु संतोष पागल रहनी

ना स्टेटस , ना डीपी रहे
अजय देवगन के हिपी रहे
रही अलगे ताव में
केहु ना बोले गाँव में
जादू रहे पाव में
घर से कई बार भागल रहनी
खूँटी पर हम टांगल रहनी
कबो हमहु संतोष पागल रहनी

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जियरा अपनो जार के देखीं खाली जेब भी झार...

रसे-रसे महुवा फुलाइल हो रामा-अशोक द्विवेदी

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