झर झर बहताटे अखियाँ से लोर,
भईल सगरे अन्हार
नाही लउके, कवनो ओर।
खून पसीना से सीचनी जवन बगिया,
ना जाने कवन लगा दिहलस अगिया,
हहर हहर जर गईल सनेहिया के डोर,
झर झर बहताटे अखियाँ से लोर।
जर गईल चाम सब पीठ प के घाम से,
जेकरे खातिर एको दिन ना रहनी आराम से,
उहे आज कहता, की का बाटे तोर,
झर झर बहताटे अखियाँ से लोर।
भाई हो औलाद खातिर खूब तु कमईह,
लेकिन अपने बुढ़ापा खातिर जरूर कुछ बचईह,
के जाने कब होखे लागि तोर मोर
झर झर बहताटे अखियाँ से लोर,
भईल सगरे अन्हार नाही लाउके कवनो ओर।