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सोना-सोना जे रटे, निनिआ भइल हराम – अनिरूद्ध

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अन्न घुनाइल खाँखरा, फटक उड़ावे सूप।
अवगुन कौड़ा तब मिटे, बनीं सूप अनुरूप।।

सोना-सोना जे रटे, निनिआ भइल हराम।
मेहनत मोती जे लुटे, सुख से करे अराम।।

सदा सतावे दीन के, धनी अउर सउकार।
धन-बूता सोभे जहाँ, दया-छमा-उपकार।।

बरे बदन बाती हँसे, सिर दे करे अँजोर।
मेघ संभु धरती जहर, दिया पिये तम घोर।।

सँपरे कारज ना सधे, आलस रोग असाध।
फिकिर देह के घून बा, करतब वैद बेआध।।

जिनगी सोना जब तपे, चमके अउर सजोर।
मउअत अगिया से डरे, बचल कहाँ ऊ लोग।।

दुख-सुख जउँआ पूत बा, दू बा नदी किनार।
सूखे ना जिनगी सरित, साहस धार पिआर।।

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