वाह रे दुनिया! – राम अचल पटेल

जियते मुँह ना मीठ करावैं
मुवते बाटैं खाझा – बुनिया
वाह रे दुनिया!

जब तक रहलें बुढ़िया- बुढ़ऊ
जिउ के ऊ जंजाल ही रहलैं
कीरा, बिच्छी, गोजर लेखा
सबके लागत काल ही रहलैं
अब तऽ पूज्यनीय हो गईलैं
भईलैं पुरखा और पुरनिया
वाह रे दुनिया!

जियते फूटी आंख ना भाए
मर गईला पे प्रीत जगेला
देख – देख के रीत जगत के
मन ही मन में खीस बरेला
जेकर पानी बिन दम घुटिगा
ओही के पानी दूनो जुनिया
वाह रे दुनिया!

मरनी – करनी जेकरे घर में
ओकरे घर में भोज जे खईबा
मरे वाला ता ब्रह्म में डूबल
जिए वाला के भाय डूबईबा
आंख मून के माने वाला
काश लोग समझित नादनिया
वाह रे दुनिया!

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