इंसानियत के पाठ पढ़ावेलन बाबूजी – दीपक सिंह ‘निकुम्भ’

अँखियाँ से लोरवा हटा देवेलन बाबूजी,
हमार दुखवा आपन बना लेवेलन बाबूजी।।

छीन के सब हमार जीवन के टेंशन,
बिखरे से हमरा के बचा लेवेलन बाबूजी।।

आवेला बेयार जब घर प बिपत के,
सबका का ढाल बन जालन बाबूजी।।

करेले सबका ला सबकुछ ऊ दिल से,
पर बदला में कुछुओ न चाहेलन बाबूजी।।

जिनगी के राह में कबो आवे ना रोड़ा,
बढ़िया से चले सिखावेलन बाबूजी।।

इंसानियत से बड़ धरम कुछउ ना होला,
इंसानियत के पाठ पढ़ावेलन बाबूजी।।

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