धन पऽ ढेर धधाईं मत,
तरक्की पऽ उतराईं मत।।
समाज में रावा रहे सिखीं,
इज्ज़त आपन गँवाई मत।।
समय के हाल केहू ना बूझे,
केहू के खिल्ली उड़ाईं मत।।
जे बड़ बा उ कबो बड़े रही,
झूठो के एँड़ी अलगाईं मत।।
जहाँ भाव मिले उँहे जाईं ,
बिना अंगेया के खाईं मत।।
भाषा चरित्र के परिभाषा हऽ,
कुल के इज्ज़त डूबाईं मत।।
ग़लती होखल आम बात बा,
एक्के गलती दोहराईं मत ।।
व्यवहार के आपन ठीक करीं,
रोज नया दुश्मन बनाईं मत।।
भरोसा जीतल जिम्मेदारी होला,
फायदा एकर —उठाईं मत ।।
सब कमाईंल एइजे रह जाला,
माटी के तन पऽ अगराईं मत।।
नेह के दीयरी जरत रहे दीं,
फूँक के अपने बुताईं मत।।