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दुनिया के रंग में रंगाइल बा जिनगी – मुकेश भावुक

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कोल्हू के जस पेराइल बा जिनगी।
बैलन के जस नधाइल बा जिनगी।

शहर के चमक में धुआं ही धुआं बा,
गांव में अबो धधाइल बा जिनगी।

खूबे मनइनी हम डीहे बा के,
तबो लोढ़ा से परिछाइल बा जिनगी।

सपना सजाइला सगरो रात दिन,
ओही सपना में भुलाइल बा जिनगी।

चाहत रहे आकाश छुवे के सपना,
धरती पर बोझे दबाइल बा जिनगी।

हंसी के बहाना, गम के कहानी,
दुनिया के रंग में रंगाइल बा जिनगी।

चलनी में पानी के उम्मीद कर के,
हर बार ‘भावुक’ बहाइल बा जिनगी।

कोल्हू के जस पेराइल बा जिनगी।
बैलन के जस नधाइल बा जिनगी।

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