चलत जब ले जिनगी के गाड़ी रहे।
पैसा कौड़ी न कवनो उधारी रहे।
नेह-छोह असहीं बनल रहे हरदम,
कायम उमिर भर आपन यारी रहे।
होखे जरूरत त जानो बा हाजिर,
कहला-कइला में न दुश्वारी रहे।
बोवल जाई अब से भरोसे के खेती,
मन में न दुख कवनो भारी रहे।
हसत-खेलत काटीं नीमन समइया,
बुरा वक्त खातिर भी तैयारी रहे।
कवनो कहाँ अब डर-भय ‘भावुक’,
जिनगी जंग ह, रोज जंग जारी रहे।