का कहीं, का बता देले बाड़ी,
उ फिर से गुनगुना देले बाड़ी।
दिन अब निमन कटी, बुझाता,
भोरहीं उ मुस्कुरा देले बाड़ी।
जेकरा खातिर हम परदेश बानी,
सब कुछ आपन लुटा देले बाड़ी।
अइसन खूटा से बाड़ीं बन्हाइल,
अरमान सगरो जरा देले बाड़ी।
हम कइसे करीं अब नादानी,
प्रेम अइसन धरा देले बाड़ी।
काहें ना करीं हम उनुकर बड़ाई,
सबके आपन बना लेले बाड़ी।
‘भावुक’, तोहरा से कछु ना चाहीं,
धूर माथे चढ़ा लेले बाड़ी।