नेह के गगरी ढाँरी जी – नूरैन अंसारी

द्वेष – घृणा हारी जी
प्रेम बाजी मारी जी

जाये वाला आइ फेर
मत रोकी बरियारी जी

जे बैरी बा आपन होई
दिल से मत उतारी जी

छोड़ी काल्ह के काल्ह पे
पहिले आज सँवारी जी

कबो राउर कबो केहु के
आइ सबकर बारी जी.

इरखा से इरखा ना मिटी
नेह के गगरी ढाँरी जी.

Share this post: