रस्म नेहिया के कहवा निभावल गइल।
साथ छोड़े के किरिया धरावल गइल।
जेकरा खातिर हम भूखनी सोमार सगरो,
हाथ हमरा से वोकर छोड़ावल गइल।
डोर, नेहिया-स्नेहिया के भइल अबर,
लोर अँखिया से केतना बहावल गइल।
मन के पोसल सपनवा, टुवर हो गइल,
चिट्ठी पत्री सब सोझा जरावल गइल।
‘नूरैन’ खानदानी इज्जत बचावे बदे,
जिद जितल, पिरितिया हरावल गइल।