बेटी है धरती, तो कोख मे ही क्यों है मरती?-शोभा प्रसाद

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बेटी है धरती तो कोख मे ही क्यों है मरती ?
जब धरती की माटी मे उपजेला अन्न,
तो परिश्रम करने मे क्यों न लगता मन!

सोई हुई बेटियां जब नींद से जगति
मलते मलते आँख को कुछ काम भी है करती
माँ पिता के सेवा करना,
अपना धर्म है समझती!

बेटियां पराए घर बीयाही जाती ,
फिर भी दो घर जोर के है रखती!

इतने अच्छे बहु बेटियों को लोग क्यों है मारती
पेट मे तरपते बेटी है बोलती घर मे बीलखती बहु है बोलती _
… मुझे मत मारो मुझे मत गारो …
* मुझे बस जिंदा ही रहने दो *
मुझे फेक के रोता छोर के,
मुझे तुम सब मत जारो!


अत्याचार सहते सहते बहु बेटियां ,
एक दिन लक्षमी दुर्गा बन जाती है ?
बेटी जब धरती है तो कोख मे ही क्यों, मरती है
बेटियां जब बहुत बनती है
सभी के आँखों मे हमेसा खटकती है!
जो घंटो बैठे अन्न को सुप से फटकति है!
बेटी धरती बेटी जननि ,
फिर जन्मी बेटी देख दुनिया क्यो रोति है?

बेटी कहती है –
पापा! पैसे नहीं चाहिए,
धन-दौलत भी नहीं चाहिए…
मुझे चाहिए बस आपका साया,
आपका प्यार भरा छाँव।

मैं जगत का फलक बना दूँ,
जहाँ चाहूँ वहाँ अपना पाँव जमा दूँ।

तो फिर क्यों…?
अगर बेटी धरती है,
तो कोख में ही क्यों मरती है?
अगर बहुत पराई होकर
दो घरों को जोड़ती है,
तो फिर क्यों समाज और ससुराल वाले
उसे जीते-जी मरने पर मजबूर करते हैं?

हैरान है मेरा मन,
परेशान है शोभा का मन…
हमेशा उठती है एक आवाज़ –
कोई तो रोको!
बहु-बेटियों पर हो रहे अत्याचार को टोको!

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