कपार के बार-राघवेंद्र प्रकाश ‘रघु’

लडकईये से चोन्हा के माहिर हई
ए ह चोन्हा खातिर खिंचाऊ हरदम
“कपार के बार”

दिन बीतत गईल अन्टी चालू रहल
अन्टी से आंटी खिसियाके खिंचस
“कपार के बार”

पहुँचल दुलारी आजी भीरी..”रघुआ”
रोअत कुहूकत कहत आपन बात.…
आंटी खिचली ह हमार
“कपार के बार”

आंटी के डॉटत लेके कोरा आजी..
दुलारत पुचकारत सुहुरावेले “रघुआ” के
“कपार के बार”

पढ़े जाए लगनी स्कूल में अब त
काजर पाउडर होखे झराउ हमार
“कपार के बार”

गलती पे हमरा के मास्टर जी
डाटस धमकावत
कहस कबार लेम तोर..
“कपार के बार”

आई पढ़ के जब हम स्कूल से भाई
फफात देखी आपन माई के दुलार,
हाथही से सुझुरावे हमार
“कपार के बार”

एकदिन घर के लोग लेके “रघुआ” के
गावत गाना तीरे गंगा बकसर के
कहे सभे बचवा कौआ लेगइल तोर
“कपार के बार”

हो गइल जब लइका ई कवलेजियाँ
सीसा निहारत गाना गुनगुनावत
चलल फेरत हाथे
“कपार के बार”

भईल गड़बड़ लागल भितरे किहुरे
झरे लागल एकर जब रे बिना उमीरे
“कपार के बार”

देखत देखत एगो नोकरी मिलल
ताहि पाछे भाई हो छोकरी मिलल
पइसा उड़े जइसे उड़े हमार
“कपार के बार”

खिसि “रघुआ” साफा चट हो गईल
इहे रामा आजु के फैसन हो गईल
अब त मत खोजी हमार
“कपार के बार”

इहो पढ़ीं

ताज़ा अपडेट्स