माई के तबियत एकाएक खराब हो गईल।
चकर खा के अंगना में गिर गईल।
डॉक्टर के भीरी जइसे-तइसे एम्बुलेंस से लेके पहुचनी।
डॉक्टर देखके कहलन –
“आपन तनी ख्याल राखी रउआ।
चिन्ता-फिकिर छोड़के टाइम-टाइम से खाई-पिई,
आ दवाई समय पर लिहल करी।
अभी रउआ बीपी लो हो गइल बा, कमजोरी भी हो गइल बा,
एगो पानी चढ़ाई पड़िहे।”
डॉक्टर पुर्जी दिहलन आ कहलन –
“जाइं, दवाई ले आईं।”
हम परेशान – “अचानक ई का हो गइल?”
घबराइल हालत में दवाई आ पानी किनके रोड पार करत रही।
एही बीच टेम्पू वाला हमरा के धक्का मार देलस।
हम फेंकाइल गइनी।
कुछ लोग हमरा माई के दवाई
जवन रोड पर छींटा गईल रहे, बटोर के दिहल।
हम खुद भकुआइल –
“गलती हमरे में रहल, बिना देखले आकुताइल रोड पार करे लगनी।”
फिलहाल अगल-बगल के लोग हमरा उठाके खड़ा कइल।
ओही भीड़ में एगो बुजुर्ग बाबा कहलन –
“बबुआ, तोर माई खर-जिउतिया भुखल ह,
तोरा खातिर बाच गइल बाड़ी।”
ए सुनते हमरा झट से याद आइल –
दवाई त हमरा हाथे में बा!
दौड़त-दौड़त डॉक्टर भीरी पहुचल।
जहाँ माई लेटल रहली।
माई के देखके अउरी रोवाई लागल।
“आज माई खर-जिउतिया भुखल बाड़ी।”
हम दवाई कंपाउडर के दिहनी।
डॉक्टर माई के पानी लगावे के कहलन।
आ दवाई खाए के तरीका बतावत कहलन –
“ई दवाई चकलेट जइसन बा,
मुँह में रख लीं, धीरे-धीरे घुल जाई,
गैस ना बनिहे।”
एतना सुनते माई तपाक से कहलन –
“डॉक्टर बाबू, आज जिउतिया ह।
आपन बबुआ खातिर भुखल बानी।
आज मरियो जाई, बाकिर
ई बरत में दवाई खा के बरत तोड़ी ना।
ना त पानी पियब।
हम ठीक बानी।
काल पारन के बाद इलाज करिहा।
अभी सुते द, तनी उंघी लागता।”
कही के माई लेट गइली।
डॉक्टर भी मुस्कुरा के कहलन –
“ठीक बा, काल से इलाज होई।
तबले एहीजे रहेदा ‘रघु’,
ताकि अगर कुछ दिक्कत होखो त तुरंते इलाज हो सके।
ई खर-जिउतिया बरत –
बाकी बरतन से बिलकुल अलग होला।”
हमरो आँख से लोर टपके लागल।
लोर पोछत डॉक्टर से कहनी –
“ठीक बा, तनी हमरा के दरद के दवाई दिहीं,
चोट लागल बा।”
दवाई खा के बस ईहे सोचत रही –
“देखअ!
माई कहत बाड़ी – मर जाईब,
बाकिर ई बरत में दवाई खा के तोड़ी ना।”
सच में, धन बाड़ू ए माई।
तोहरा के कोटि-कोटि प्रणाम करतानी।
हम माई के गोड़ दबावत
बाबा ब्रह्मेश्वर नाथ से प्रार्थना करे लगनी –
“ए भोलेनाथ, अब सभ कुछ रउवे पर बा।”