पड़ी है माँ उधर बीमार आंगन में-सन्तोष विश्वकर्मा ‘सूर्य’

पड़ी है माँ उधर बीमार आंगन में।
पुरानी चीज ज्यों बेकार आंगन में।

कमाने लग गया है अब मेरा भाई,
खड़ी होने लगी दीवार आंगन में।

नहीं आयी बहन मैके में इस सावन‌,
खुशी लौटी नहीं इस बार आंगन‌ में।

सभी बैठे हैं होकर कैद कमरे में,
हवा खामोश है लाचार आंगन में।

खबर सब फेसबुक से मिल रही है ‘सूर्य’
नहीं आता है अब अखबार आंगन में।

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