माई रे! – शम्श जमील

तोहरे से हमरा जिनगी के
भोर बाटे नू माई रे
तहरे कारन घरवा मे हमरा
अंजोर बाटे नू माई रे।

काश उ बचपन आइत फेरू
घुघूवा तोहर भेंटाइत फेरू
जब भी निन ना आइत हमके
लोरी तोहर सुनाइत फेरू।

हर मरहम अँचरा के तोहर
कोर बाटे नू माई रे।
तहरे कारन घरवा मे हमरा
अंजोर बाटे नू माई रे।

आज हमके छलऽता सभे
पिठ पीछे हाथ मलऽता सभे
दू पइसा के आदमी का भइनी
आपन बेगाना जलऽता सभे।

लोभी जुग मे ममता तोहर
पियोर बाटे नू माई रे।
तहरे कारन घरवा मे हमरा
अंजोर बाटे नू माई रे।

लाल से अपना ना रूठल माई
बिखर गइनी हम ना टुटल माई
तनी एसा बोखार का लागल
रात, रात भर ना सुतल माई।

तोहरा बिना परदेश मे बादर
घनघोर बाटे नू माई रे।
तहरे कारन घरवा मे हमरा
अंजोर बाटे नू माई रे।

डहकी उहो डहकावता जे
कुल्ही उहो कुहकावता जे
रिवाज़ चली पीढ़ी दर पीढ़ी
बहकी उहो बहकावता जे।

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