मन में येतना मईल लेके-राज कुमार यादव

मन में येतना मईल लेके कैसे
दुर्गा माई पर लोग चुनरी चढ़ावे
बुढ पुरनीया माई के अपना
घर में लोगवा रोज रोआवे
अपने खाला सब पिज़ा बर्गर
माई के एगो रोटी ला तरसावे !

कौनो पर्व त्योहारो में माई ला
कपड़ा ना अब आवे
जवन बेटा के माई दुनिया देखवली
वोकरे माई तनीको ना भावे
मन में येतना मईल लेके कैसे
दुर्गा माई पर लोग चुनरी चढ़ावे!

बचपन में जवन माई
लोरी सुनाके अपना अचरे पर सुतावे
उहे बेटा माई के अपना विद्धा_आश्रम में पहुंचावें
मन में येतना मईल लेके कैसे
दुर्गा माई पर लोग चुनरी चढ़ावे

दुलार प्यार सब भुल माई के
बेटवे अब त आंख देखावे
दुख दर्द सब सहके माई
केहु से कबो कूछ ना बतावे
मन में येतना मईल लेके कैसे
दुर्गा माई पर लोग चुनरी चढ़ावे

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