नींद चैन नयनन मे नाही
प्रियतम दरस देहत नाही
सुनी हो गई ब्रज की नगरी
प्रियतम सुध लिहले नाही
नयनन मे अब लोर नाही
ह्दय मे अब पीर नाही
पत्थर वन गई तोहारी दासी
मन मे अब धीरज नाही
छलिया जानत राधा की बतीया
मीरा की जस गावत नाही
तोहरी याद मे श्याम ऑंखिया
अब पलकंन झपकावत नाही
शुद बुद सब खोई हमरी
पल पल राह नीहारत
बैरी लागे गोकुल की नगरी
जब से गईले मोरे प्रियतम.