मोबाइल फोन, जो कभी सिर्फ ज़रूरत की चीज़ था,
आज इंसानों की ज़िंदगी पर हावी हो गया है।
इंसान खुद सोचने-समझने वाला जीव था,
लेकिन अब मोबाइल पर निर्भर होकर बेबस और बेचारा बन गया है।
उसका मक़सद ही शायद मुझे तड़पाना है,
क्योंकि उसके व्यवहार में दर्द ज़्यादा और अपनापन कम महसूस होता है।
वो प्यार भी मुझसे ही करता है,
और उसी प्यार को मुझसे छिपाता भी है —
जैसे प्यार स्वीकारना उसकी कमजोरी हो।